भाईदूज : 25 October 2014
दीपावली के दो दिन बाद आता है भाईदूज का पर्व। दीपावली के पर्व का पाँचवाँ दिन। भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सद्भावना बढ़ाने का दिन है।
हमारा मन एक कल्पवृक्ष है। मन जहाँ से फुरता है, वह चिदघन चैतन्य सच्चिदानंद परमात्मा सत्यस्वरूप है। हमारे मन के संकल्प आज नहीं तो कल सत्य होंगे ही। किसी की बहन को देखकर यदि मन में दुर्भाव आया हो तो भाईदूज के दिन उस बहन को अपनी ही बहन मानो और बहन भी ‘पति के सिवाय सब पुरुष मेरे सब भाई हैं’ यह भावना विकसित करे और भाई का कल्याण हो-ऐसा संकल्प करे। भाई भी बहन की उन्नति का संकल्प करे। इस प्रकार भाई-बहन के परस्पर प्रेम और उन्नति की भावना को बढ़ाने का अवसर देनेवाला पर्व है ‘भाईदूज’।
जिसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में विकास भी नहीं है। जिसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के करीब भी नहीं है।
भारतीय संस्कृति के निर्माता ऋषिजन कितनी दूरदृष्टि वाले रहे होंगे! महीने में अथवा वर्ष में एक-दो दिन आदेश देकर कोई काम मनुष्य के द्वारा करवाया जाए तो उससे मनुष्य का विकास संभव नहीं है। परंतु मनुष्य यदा-कदा अपना अपना विवेक जागकर उल्लास, आनंद, प्रसन्नता, स्वास्थ्य और स्नेह का गुण विकसित करे तो उसका जीवन विकसित हो सकता है। मनुष्य-जीवन का विकास करनेवाले ऐसे पर्वों का आयोजन करके जिन्होंने हमारे समाज का निर्माण किया है, उन निर्माताओं को मैं सच्चे हृदय से वंदन करता हूँ...
अभी कोई भी ऐसा धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग ध्यानमग्न हो जाते हो, भाव-समाधिस्थ हो जाते हों, कीर्तन में झूम उठते हों। जैसे, स्तंभ के बगैर पंडाल नहीं रह सकता, वैसे ही उत्सव के बिना धर्म विकसित नहीं हो सकता। जिस धर्म में खूब-खूब अच्छे उत्सव हैं, वह धर्म है सनातन धर्म। सनातन धर्म के बालकों को अपनी सनातन वस्तु प्राप्त हो, उसके लिए उदार चरित्र बनाने का जो काम है वह पर्वों, उत्सवों और सत्संगों के आयोजनों द्वारा हो रहा है।
पाँच पर्वों के पुंज इस दीपावली महोत्सव को लौकिक रूप से मनाने के साथ-साथ हम उसके आध्यत्मिक महत्त्व को भी समझें, यही लक्ष्य हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों का रहा है।
इस पर्वपुंज के निमित्त ही सही, अपने ऋषि-मुनियों के, संतों के, सद्गुरुदेव के दिव्य ज्ञान के आलोक में हम अपना अज्ञानांधकर मिटाने के मार्ग पर शीघ्रता से अग्रसर हों-यही इस दीपमालाओं के पर्व दीपावली का संदेश है।
आप सभी को दीपावली हेतु खूब-खूब बधाइयाँ... आनंद-ही-आनंद... मंगल-ही-मंगल...
दीपावली के दो दिन बाद आता है भाईदूज का पर्व। दीपावली के पर्व का पाँचवाँ दिन। भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सद्भावना बढ़ाने का दिन है।
हमारा मन एक कल्पवृक्ष है। मन जहाँ से फुरता है, वह चिदघन चैतन्य सच्चिदानंद परमात्मा सत्यस्वरूप है। हमारे मन के संकल्प आज नहीं तो कल सत्य होंगे ही। किसी की बहन को देखकर यदि मन में दुर्भाव आया हो तो भाईदूज के दिन उस बहन को अपनी ही बहन मानो और बहन भी ‘पति के सिवाय सब पुरुष मेरे सब भाई हैं’ यह भावना विकसित करे और भाई का कल्याण हो-ऐसा संकल्प करे। भाई भी बहन की उन्नति का संकल्प करे। इस प्रकार भाई-बहन के परस्पर प्रेम और उन्नति की भावना को बढ़ाने का अवसर देनेवाला पर्व है ‘भाईदूज’।
जिसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में विकास भी नहीं है। जिसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के करीब भी नहीं है।
भारतीय संस्कृति के निर्माता ऋषिजन कितनी दूरदृष्टि वाले रहे होंगे! महीने में अथवा वर्ष में एक-दो दिन आदेश देकर कोई काम मनुष्य के द्वारा करवाया जाए तो उससे मनुष्य का विकास संभव नहीं है। परंतु मनुष्य यदा-कदा अपना अपना विवेक जागकर उल्लास, आनंद, प्रसन्नता, स्वास्थ्य और स्नेह का गुण विकसित करे तो उसका जीवन विकसित हो सकता है। मनुष्य-जीवन का विकास करनेवाले ऐसे पर्वों का आयोजन करके जिन्होंने हमारे समाज का निर्माण किया है, उन निर्माताओं को मैं सच्चे हृदय से वंदन करता हूँ...
अभी कोई भी ऐसा धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग ध्यानमग्न हो जाते हो, भाव-समाधिस्थ हो जाते हों, कीर्तन में झूम उठते हों। जैसे, स्तंभ के बगैर पंडाल नहीं रह सकता, वैसे ही उत्सव के बिना धर्म विकसित नहीं हो सकता। जिस धर्म में खूब-खूब अच्छे उत्सव हैं, वह धर्म है सनातन धर्म। सनातन धर्म के बालकों को अपनी सनातन वस्तु प्राप्त हो, उसके लिए उदार चरित्र बनाने का जो काम है वह पर्वों, उत्सवों और सत्संगों के आयोजनों द्वारा हो रहा है।
पाँच पर्वों के पुंज इस दीपावली महोत्सव को लौकिक रूप से मनाने के साथ-साथ हम उसके आध्यत्मिक महत्त्व को भी समझें, यही लक्ष्य हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों का रहा है।
इस पर्वपुंज के निमित्त ही सही, अपने ऋषि-मुनियों के, संतों के, सद्गुरुदेव के दिव्य ज्ञान के आलोक में हम अपना अज्ञानांधकर मिटाने के मार्ग पर शीघ्रता से अग्रसर हों-यही इस दीपमालाओं के पर्व दीपावली का संदेश है।
आप सभी को दीपावली हेतु खूब-खूब बधाइयाँ... आनंद-ही-आनंद... मंगल-ही-मंगल...