Diwali Puja Vidhi in Hindi - दिवाली पूजा विधि
दीवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया जाता है| दीवाली के दिन गृहस्थ और वाणिज्य वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और वित्तकोष की कामना करते हैं, आज के दिन सभी उत्तर भारतीय (North Indian) लक्ष्मी का पूजन अवश्य करते / कराते हैं।
12 नवम्बर 2023 कार्तिक क़ृष्ण अमावस्या श्रीमहालक्षमी जी का पूजन मान्य रहेगा। शास्त्र गणना अनुसार अमावस्या तिथि 12 Nov 23 को शाम 02 बजकर 44 मिनट से शुरु होगी और 13 नवम्बर को शाम 02 बज कर 56 मिनट पर समाप्त होगी इसलिये श्रीमहालक्षमी जी का पूजन 12 नवम्बर 2023 को उत्तम कहा जाएगा।
उपर्युक्त किसी भी समय में श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, व्यापारिक खातों का पूजन, दीपदान, अपने सेवकों को वस्तुएं दान करने के लिये शुभ रहेगा. प्रदोष काल मंदिर मे दीप दान, रंगोली और पूजा की पूर्ण तयारी कर लेनी चाहिए। इसी समय मे मिठाई वितरण कार्य भी संपन्न कर लेना चाहिए. द्वार प़र स्वस्तिक और शुभ लाभ का सिन्दूर से निर्माण भी इसी समय करना चाहिए.
पूजा की सामग्री
पूजा की तैयारी: चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख दक्षिण या पश्चिम में रहे जिससे पूजन करने वाले के मुख उत्तर या पूरब में होगा। लक्ष्मीजी,गणेशजी की दाहिनी ओर रहें. पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।श्रीयंत्र भी स्थापित कर सकते हैं। गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएँ. सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियाँ बनाएँ. छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें. तीन थालियों में निम्न सामान रखें।
लक्ष्मी पूजन विधि :- आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए. कुछ द्रव्य भी ले लीजिए. द्रव्य का अर्थ है कुछ धन।
पूजा विधि
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये अपने ऊपर तथा समस्त पूजन सामग्री पर जल छिड़कें ।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोस्ति वा।
य: स्मेरत पुण्डरीकांक्ष स बाह्यभ्यन्तर: शुचि: ॥
चौकी के दायीं ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें। इसके पश्चात दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर निम्न मंत्रों से स्वस्तिवाचन करें -
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धाश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमि:स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु॥
पय: पृथिव्यांपय ओषधीयु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा:। पयस्वती: प्रदिश: सन्तु मह्यम। विष्णो रामटमसि विष्णो: श्नप्त्रेस्थो विष्णो: स्यूरिस विष्णोधुरर्वासि:। वैष्णवमसि विष्णवे त्वा॥ अग्निर्देवताव्वातोदेवतासूय्र्योदेवता चन्द्रमा देवताव्वसवो देवता रुद्रोदेवता बृहस्पति: देवतेन्द्रोदेवताव्वरुणादेवता:॥ ॐ शांति: शांति: सुशांतिभर्वतु। सर्वोरिष्ठ-शांतिर्भवतु॥
विभिन्न देवताओं के स्मरण के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें-
विनायकम गुरुं भानुं ब्रहाविष्णुमहेश्वरान।
सरस्वतीय प्रणाम्यादौ सर्वकार्यार्थ सिद्धर्य॥
हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्प को चौकी पर समर्पित कर दें।
एक सुपारी लेकर उस पर मौली लपेटकर चौकी पर थोड़े से चावल रखकर सुपारी को उस पर रख दें। तदुपरांत भगवान गणेश का आह्वान करें-
आहृवान के पश्चात निम्नलिखित मंत्र की सहायता से गणेशजी की प्रतिष्ठा करें और उन्हें आसन दें-
अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
गजाननं सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम ॥
प्रतिष्ठापूर्वककम आसनार्थे अक्षतान समपर्यामि गजाननाभ्यां नम:।
पुन: अक्षत लेकर गणेशजी के दाहिनी ओर माता अम्बिका का आवाहन करें
ॐ अम्बे अम्बिकेम्बालिके न मां नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम ।
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम।
लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम॥
ॐ भूभुर्व: स्व: गौर्य नम:, गौरीमावाहयमि, स्थापयामि, पूजयामि च ।
अक्षत चौकी पर छोड़ दें। अब पुन: अक्षत लेकर माता अम्बिका की प्रतिष्ठा करें-
अस्यै देवत्वमचौर्य मामहेति च कश्चन॥
आम्बिके सुप्रतिष्ठिते भवेताम।
प्रतिष्ठापूर्वकम आसनाथे अक्षतान समर्पयामि गणेशम्बिका नम: ।
ऐसा कहते हुए आसन के समक्ष समर्पित करें।
Maha Laxmi Poojan/ महा लक्ष्मी पूजन
उक्त समस्त प्रक्रिया के पश्चात प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। पूजन से पूर्व नवीन चित्र और श्रीयंत्र तथा द्रव्यलक्ष्मी स्वर्ण अथवा चांदी के सिक्के आदि की निम्नलिखित मंत्र से अक्षत छोड़कर प्रतिष्ठा कर लेनी चाहिए।
अस्यै प्राण: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्मर्चायै मामहेति च कश्चन॥
ध्यान: तदुपरान्त हाथ में लाल कमल पुष्प लेकर निम्न मंत्र से देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
आवाहन: हाथ में पुष्प लेकर देवी का आवाहन करे-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदासिनौम।
सर्वदेवमदयीमीशां देवीवाहयाम्हम॥
अब पुष्प समर्पित करें।
तप्मकाऋनर्वाभं मुक्तामणिविराजितम।
अमलं कमलं दिव्योमासन प्रतिगृहृताम॥
आसन के लिए कमल पुष्प अर्पित करें-
गड्डनदितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम।
पाद्यं ददाम्यी देवि गृहाणाशु नमोस्तुति ते॥
अर्घ्य: निम्न मंत्र से देवी को अर्घ्य दें अष्टगंध से मिश्रित जल से-
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम।
अघ्र्यं गृहाण महतं महालक्ष्मी नमोस्तुते॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अघ्य समर्पयामि॥
स्नान: निम्न मंत्र से देवी को स्नान कराएं-
मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहासितै:।
स्नानं कुरूष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभि:॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं समर्पयामि॥
पचांमृतस्नान: निम्न मंत्र से देवी को पंचामृत घी, शहद, दुग्ध, शर्करा, दही स्नान कराए:
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम।
पत्रामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगुहृताम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पंचामृत स्नानं समर्पयामि॥
शुद्धोदक स्नान: निम्न मंत्र से देवी को शुद्धोदक स्नान कराएं:
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिदं कल्पित तुभ्यं स्नानार्थ प्रतिगृहृताम॥
ओम महालक्ष्त्यै नम:। शुद्धोदक स्नानं समर्पयातिम॥
वस्त्र: निम्न मंत्र से देवी को वस्त्र अर्पित करें:
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥
ॐ महालक्ष्मै नम:। वस्त्रं समर्पयामि॥
आभूषण: निम्न मंत्र से देवी को आभूषण अर्पित करें:
रत्नकड्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकदत्तानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्ताति स्वीकुरुष्व भो:॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आभूषणें समर्पयामि॥
गंध: निम्न मंत्र से देवी को गंध रोली-चंदन अर्पित करें:
श्रीखण्डं चंदन दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम।
विलेपनं सुरक्षेष्ठ चदंन प्रमितगृहृताम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। गन्धं समर्पयामि॥
सिंदूर: निम्न मंत्र से देवी को सिंदूर अर्पित करें:
सिन्दूरं रक्तवर्ण व सिन्दूरतिलप्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृहृताम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि॥
कुमकुम: निम्न मंत्र से देवी को कुमकुम अर्पित करें:
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्ययाणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपाथ गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। कुंकुमं समर्पयामि॥
अक्षत: निम्न मंत्र से देवी को अक्षत चावल अर्पित करे:
अक्षताश्च सुरक्षेष्ठे कुड्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतम समर्पयामि॥
अक्षत के स्थान पर अपनी परम्परा के अनुरूप हल्दी की गांठ या गुड़ भी अर्पित किया जाता है।
पुष्प एवं पुष्पमाला: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करे-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजाथ प्रतिगृहृताम।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पं पुष्पमालाम च समर्पयामि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। धूपमाप्रापघामि॥
दीप: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को दीप दिखाएं:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहृना योजित मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दीपम दर्शयामि॥
नैवेद्य: किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर नैवेद्य प्रसाद रखें तथा उस पर लौंग का जोड़ा अथवा इलायची रखें। तदुपरांत निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को उक्त समस्त सामग्री अर्पित करें-
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृहृाताम॥
ऐसा कहते हुए जल अर्पित करें।
उत्तरापानार्थ हस्तप्रक्षालनाथ मुख्यप्रक्षलानार्थ च जलं समर्पयामि।
ऋतुफल और दक्षिणा: अग्रलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को ऋतुफल और दक्षिणा अर्पित करें:
इदं फलं मया देवि स्थापित पुरतस्तव:।
तेन से सफलावप्तिर्भवेज्जनमनि जन्मनि॥
हिरणगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसों:।
अनन्तपुण्यफलमत: शांतिं प्रयच्छ मे॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ऋतु फलं दक्षिणाम च समर्पयामि:॥
आरती, पुष्पाज्जलि और प्रदक्षिणा
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए आरती, पुष्पाज्जलि और प्रदक्षिणा करें:
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं त प्रदीपितम।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोभ्दवानि च।
पुष्पाज्जलिर्मया दत्ता गृहाण परमेश्वरि॥
यानि काानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान समर्पयामि॥
समर्पण
निम्नलिखित का उच्चारण करते हुए महालक्ष्मी के समक्ष पूजन कर्म को समर्पित करें और इस निमित्त जल अर्पित करें-
कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम न मम॥
अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन कीजिये.
उक्त प्रक्रिया के पश्चात देवी के समक्ष दण्डवत प्रणाम करें तथा अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगते हुए, देवी से सुख-सम़ृद्धि , आरोग्य तथा वैभव की कामना करें।
दीवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया जाता है| दीवाली के दिन गृहस्थ और वाणिज्य वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और वित्तकोष की कामना करते हैं, आज के दिन सभी उत्तर भारतीय (North Indian) लक्ष्मी का पूजन अवश्य करते / कराते हैं।
12 नवम्बर 2023 कार्तिक क़ृष्ण अमावस्या श्रीमहालक्षमी जी का पूजन मान्य रहेगा। शास्त्र गणना अनुसार अमावस्या तिथि 12 Nov 23 को शाम 02 बजकर 44 मिनट से शुरु होगी और 13 नवम्बर को शाम 02 बज कर 56 मिनट पर समाप्त होगी इसलिये श्रीमहालक्षमी जी का पूजन 12 नवम्बर 2023 को उत्तम कहा जाएगा।
उपर्युक्त किसी भी समय में श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, व्यापारिक खातों का पूजन, दीपदान, अपने सेवकों को वस्तुएं दान करने के लिये शुभ रहेगा. प्रदोष काल मंदिर मे दीप दान, रंगोली और पूजा की पूर्ण तयारी कर लेनी चाहिए। इसी समय मे मिठाई वितरण कार्य भी संपन्न कर लेना चाहिए. द्वार प़र स्वस्तिक और शुभ लाभ का सिन्दूर से निर्माण भी इसी समय करना चाहिए.
पूजा की सामग्री
- 1. लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में)
- 2. केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग, कमल का फूल, केले के पेड़।
- 3. सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 या अधिक दीपक
- 4. रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए.
पूजा की तैयारी: चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख दक्षिण या पश्चिम में रहे जिससे पूजन करने वाले के मुख उत्तर या पूरब में होगा। लक्ष्मीजी,गणेशजी की दाहिनी ओर रहें. पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।श्रीयंत्र भी स्थापित कर सकते हैं। गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएँ. सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियाँ बनाएँ. छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें. तीन थालियों में निम्न सामान रखें।
- ग्यारह दीपक(पहली थाली में)
- खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
- फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक. (तीसरी थाली में)
लक्ष्मी पूजन विधि :- आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए. कुछ द्रव्य भी ले लीजिए. द्रव्य का अर्थ है कुछ धन।
पूजा विधि
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये अपने ऊपर तथा समस्त पूजन सामग्री पर जल छिड़कें ।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोस्ति वा।
य: स्मेरत पुण्डरीकांक्ष स बाह्यभ्यन्तर: शुचि: ॥
चौकी के दायीं ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें। इसके पश्चात दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर निम्न मंत्रों से स्वस्तिवाचन करें -
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धाश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमि:स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु॥
पय: पृथिव्यांपय ओषधीयु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा:। पयस्वती: प्रदिश: सन्तु मह्यम। विष्णो रामटमसि विष्णो: श्नप्त्रेस्थो विष्णो: स्यूरिस विष्णोधुरर्वासि:। वैष्णवमसि विष्णवे त्वा॥ अग्निर्देवताव्वातोदेवतासूय्र्योदेवता चन्द्रमा देवताव्वसवो देवता रुद्रोदेवता बृहस्पति: देवतेन्द्रोदेवताव्वरुणादेवता:॥ ॐ शांति: शांति: सुशांतिभर्वतु। सर्वोरिष्ठ-शांतिर्भवतु॥
विभिन्न देवताओं के स्मरण के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें-
विनायकम गुरुं भानुं ब्रहाविष्णुमहेश्वरान।
सरस्वतीय प्रणाम्यादौ सर्वकार्यार्थ सिद्धर्य॥
हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्प को चौकी पर समर्पित कर दें।
एक सुपारी लेकर उस पर मौली लपेटकर चौकी पर थोड़े से चावल रखकर सुपारी को उस पर रख दें। तदुपरांत भगवान गणेश का आह्वान करें-
आहृवान के पश्चात निम्नलिखित मंत्र की सहायता से गणेशजी की प्रतिष्ठा करें और उन्हें आसन दें-
अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
गजाननं सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम ॥
प्रतिष्ठापूर्वककम आसनार्थे अक्षतान समपर्यामि गजाननाभ्यां नम:।
पुन: अक्षत लेकर गणेशजी के दाहिनी ओर माता अम्बिका का आवाहन करें
ॐ अम्बे अम्बिकेम्बालिके न मां नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम ।
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम।
लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम॥
ॐ भूभुर्व: स्व: गौर्य नम:, गौरीमावाहयमि, स्थापयामि, पूजयामि च ।
अक्षत चौकी पर छोड़ दें। अब पुन: अक्षत लेकर माता अम्बिका की प्रतिष्ठा करें-
अस्यै देवत्वमचौर्य मामहेति च कश्चन॥
आम्बिके सुप्रतिष्ठिते भवेताम।
प्रतिष्ठापूर्वकम आसनाथे अक्षतान समर्पयामि गणेशम्बिका नम: ।
ऐसा कहते हुए आसन के समक्ष समर्पित करें।
Maha Laxmi Poojan/ महा लक्ष्मी पूजन
उक्त समस्त प्रक्रिया के पश्चात प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। पूजन से पूर्व नवीन चित्र और श्रीयंत्र तथा द्रव्यलक्ष्मी स्वर्ण अथवा चांदी के सिक्के आदि की निम्नलिखित मंत्र से अक्षत छोड़कर प्रतिष्ठा कर लेनी चाहिए।
अस्यै प्राण: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्मर्चायै मामहेति च कश्चन॥
ध्यान: तदुपरान्त हाथ में लाल कमल पुष्प लेकर निम्न मंत्र से देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
आवाहन: हाथ में पुष्प लेकर देवी का आवाहन करे-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदासिनौम।
सर्वदेवमदयीमीशां देवीवाहयाम्हम॥
अब पुष्प समर्पित करें।
तप्मकाऋनर्वाभं मुक्तामणिविराजितम।
अमलं कमलं दिव्योमासन प्रतिगृहृताम॥
आसन के लिए कमल पुष्प अर्पित करें-
गड्डनदितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम।
पाद्यं ददाम्यी देवि गृहाणाशु नमोस्तुति ते॥
अर्घ्य: निम्न मंत्र से देवी को अर्घ्य दें अष्टगंध से मिश्रित जल से-
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम।
अघ्र्यं गृहाण महतं महालक्ष्मी नमोस्तुते॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अघ्य समर्पयामि॥
स्नान: निम्न मंत्र से देवी को स्नान कराएं-
मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहासितै:।
स्नानं कुरूष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभि:॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं समर्पयामि॥
पचांमृतस्नान: निम्न मंत्र से देवी को पंचामृत घी, शहद, दुग्ध, शर्करा, दही स्नान कराए:
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम।
पत्रामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगुहृताम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पंचामृत स्नानं समर्पयामि॥
शुद्धोदक स्नान: निम्न मंत्र से देवी को शुद्धोदक स्नान कराएं:
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिदं कल्पित तुभ्यं स्नानार्थ प्रतिगृहृताम॥
ओम महालक्ष्त्यै नम:। शुद्धोदक स्नानं समर्पयातिम॥
वस्त्र: निम्न मंत्र से देवी को वस्त्र अर्पित करें:
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥
ॐ महालक्ष्मै नम:। वस्त्रं समर्पयामि॥
आभूषण: निम्न मंत्र से देवी को आभूषण अर्पित करें:
रत्नकड्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकदत्तानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्ताति स्वीकुरुष्व भो:॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आभूषणें समर्पयामि॥
गंध: निम्न मंत्र से देवी को गंध रोली-चंदन अर्पित करें:
श्रीखण्डं चंदन दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम।
विलेपनं सुरक्षेष्ठ चदंन प्रमितगृहृताम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। गन्धं समर्पयामि॥
सिंदूर: निम्न मंत्र से देवी को सिंदूर अर्पित करें:
सिन्दूरं रक्तवर्ण व सिन्दूरतिलप्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृहृताम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि॥
कुमकुम: निम्न मंत्र से देवी को कुमकुम अर्पित करें:
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्ययाणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपाथ गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। कुंकुमं समर्पयामि॥
अक्षत: निम्न मंत्र से देवी को अक्षत चावल अर्पित करे:
अक्षताश्च सुरक्षेष्ठे कुड्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतम समर्पयामि॥
अक्षत के स्थान पर अपनी परम्परा के अनुरूप हल्दी की गांठ या गुड़ भी अर्पित किया जाता है।
पुष्प एवं पुष्पमाला: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करे-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजाथ प्रतिगृहृताम।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पं पुष्पमालाम च समर्पयामि॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। धूपमाप्रापघामि॥
दीप: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को दीप दिखाएं:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहृना योजित मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दीपम दर्शयामि॥
नैवेद्य: किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर नैवेद्य प्रसाद रखें तथा उस पर लौंग का जोड़ा अथवा इलायची रखें। तदुपरांत निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को उक्त समस्त सामग्री अर्पित करें-
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृहृाताम॥
ऐसा कहते हुए जल अर्पित करें।
उत्तरापानार्थ हस्तप्रक्षालनाथ मुख्यप्रक्षलानार्थ च जलं समर्पयामि।
ऋतुफल और दक्षिणा: अग्रलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को ऋतुफल और दक्षिणा अर्पित करें:
इदं फलं मया देवि स्थापित पुरतस्तव:।
तेन से सफलावप्तिर्भवेज्जनमनि जन्मनि॥
हिरणगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसों:।
अनन्तपुण्यफलमत: शांतिं प्रयच्छ मे॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ऋतु फलं दक्षिणाम च समर्पयामि:॥
आरती, पुष्पाज्जलि और प्रदक्षिणा
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए आरती, पुष्पाज्जलि और प्रदक्षिणा करें:
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं त प्रदीपितम।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोभ्दवानि च।
पुष्पाज्जलिर्मया दत्ता गृहाण परमेश्वरि॥
यानि काानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान समर्पयामि॥
समर्पण
निम्नलिखित का उच्चारण करते हुए महालक्ष्मी के समक्ष पूजन कर्म को समर्पित करें और इस निमित्त जल अर्पित करें-
कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम न मम॥
अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन कीजिये.
उक्त प्रक्रिया के पश्चात देवी के समक्ष दण्डवत प्रणाम करें तथा अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगते हुए, देवी से सुख-सम़ृद्धि , आरोग्य तथा वैभव की कामना करें।