होली जलाने का शुभ समय : 17 मार्च 2022 ” 2105 से 2215 तक
*होली का पूजन – Holika Poojan*
होली पूजने की सामग्री – Holi pooja ki samagri
गोबर से बने बड़कूले , रोली , मौली , अक्षत , अगरबत्ती , फूलमाला , कच्चा सूत , गुड़ , साबुत हल्दी , मूंग-चावल , फूले , बताशे , गुलाल ,
नारियल , जल का लोटा , गेहूं की नई हरी बालियां , हरे चने का पौधा आदि।
बड़कूले ( भरभोलिए ) कितने होने चाहिए
होली से दस बारह दिन पहले शुभ दिन देखकर गोबर से सात बड़कूले ( Badkule ) बनाये जाते है। गोबर से बने बड़कूले को भरभोलिए
( bharbholiye ) भी कहा जाता है। पाँच बड़कूले छेद वाले बनाये जाते है ताकि उनको माला बनाने के लिए पिरोया जा सके।
दो बड़कूले बिना छेद वाले बनाये जाते है । इसके बाद गोबर से ही सूरज , चाँद , तारे , और अन्य खिलौने बनाये जाते है। पान , पाटा , चकला ,
एक जीभ , होला – होली बनाये जाते है। इन पर आटे , हल्दी , मेहंदी , गुलाल आदि से बिंदियां लगाकर सजाया जाता है। होलिका की आँखें
चिरमी या कोड़ी से बनाई जाती है। अंत में ढाल और तलवार बनाये जाते है।
बड़कूले से माला बनाई जाती है। माला में होलिका , खिलोंने , तलवार , ढाल आदि भी पिरोये जाते है। एक माला पितरों की , एक हनुमान जी
की , एक शीतला माता की और एक घर के लिए बनाई जाती है। बाजार से तैयार माला भी खरीद सकते है। यह पूजा में काम आती है।
💐पूजन करने का तरीका💐
पूजन करते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
जल की बूंदों का छिड़काव आसपास तथा पूजा की थाली और खुद पर करें।
इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
इसके पश्चात् होलिका को रोली , मौली , चावल अर्पित करें , पुष्प अर्पित करें , चावल मूंग का भोग लगाएं। बताशा , फूले आदि चढ़ाएं।
हल्दी , मेहंदी , गुलाल , नारियल और बड़कूले चढ़ाएं। हाथ जोड़कर होलिका से सुख समृद्धि की कामना करें। सूत के धागे से होलिका
के चारों ओर घूमते हुए तीन , पाँच या सात बार लपेट दें । जल का लोटा वहीं पूरा खाली कर दें।
इसके बाद होलीका दहन किया जाता है। पुरुषों के माथे पर तिलक लगाया जाता है। होली जलने पर रोली चावल चढ़ाकर सात बार अर्घ्य
देकर सात परिक्रमा करनी चाहिए । इसके बाद साथ लाये गए हरे गेहूं और चने होली की अग्नि में भून लें। होली की अग्नि थोड़ी सी अपने
साथ घर ले आएं। ये दोनों काम बड़ी सावधानी पूर्वक करने चाहिए। होली की अग्नि से अपने घर में धूप दिखाएँ। भूने हुए गेहूं और चने प्रसाद
के रूप में ग्रहण करे।
होलिका की कथा व्रतकथा
बसंत ऋतू के आते ही राग, संगीत और रंग का त्यौहार होली, खुशियों और भाईचारे के सन्देश के साथ अपने रंग-बिरंगी आंचल में सबको ढ़क लेती है. हिन्दुओं का यह प्रमुख त्यौहार होली हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस पवित्र त्यौहार के सन्दर्भ में यूं तो कई कथाएं इतिहासों और पुराणों में वर्णित है, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ विष्णु पुराण में वर्णित प्रहलाद और होलिका की कथा सबसे ज्यादा मान्य और प्रचलित है.
प्रहलाद और होलिका की कथा
कथानुसार श्रीहरि विष्णु के परम भक्त प्रहलाद का पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप नास्तिक और निरंकुश था. उसने अपने पुत्र से विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा परन्तु अथक प्रयासो के बाद भी वह सफल नहीं हो सका. तदुपरांत हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे की भक्ति को देखते हुए उसे मरवा देने का निर्णय लिया. लेकिन अपने पुत्र को मारने की उसकी कई कोशिशें विफल रहीं इसके बाद उसने यह कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह कभी जल नहीं सकती. होलिका अपने भाई के कहने पर प्रहलाद को लेकर जलती चिता पर बैठ गई. लेकिन इस आग में प्रहलाद तो जला नहीं पर होलिका जल गई. तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी है.
इसी घटना के स्मरण स्वरुप लोग होली की पिछली रात को होलिका जलाते हैं और अगले दिन रंग और गुलाल से एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं.
होली के अवसर पर सतरंगी रंगों के साथ सात सुरों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस दिन रंगों से खेलते समय मन में ख़ुशी, प्यार और उमंग छा जाते हैं और अपने आप तन मन नृत्य करने को मचल जाता है. दुश्मनी को दोस्ती के रंग में रंगने वाला त्यौहार होली देश का एकमात्र ऐसा त्यौहार है, जिसे देश के सभी नागरिक उन्मुक्त भाव और सौहार्दपूर्ण तरीके से मानते हैं. इस त्यौहार में भाषा, जाति और धर्म का सभी दीवारें गिर जाती है, जिससे समाज को मानवता का अमूल्य सन्देश मिलता है
*होली का पूजन – Holika Poojan*
होली पूजने की सामग्री – Holi pooja ki samagri
गोबर से बने बड़कूले , रोली , मौली , अक्षत , अगरबत्ती , फूलमाला , कच्चा सूत , गुड़ , साबुत हल्दी , मूंग-चावल , फूले , बताशे , गुलाल ,
नारियल , जल का लोटा , गेहूं की नई हरी बालियां , हरे चने का पौधा आदि।
बड़कूले ( भरभोलिए ) कितने होने चाहिए
होली से दस बारह दिन पहले शुभ दिन देखकर गोबर से सात बड़कूले ( Badkule ) बनाये जाते है। गोबर से बने बड़कूले को भरभोलिए
( bharbholiye ) भी कहा जाता है। पाँच बड़कूले छेद वाले बनाये जाते है ताकि उनको माला बनाने के लिए पिरोया जा सके।
दो बड़कूले बिना छेद वाले बनाये जाते है । इसके बाद गोबर से ही सूरज , चाँद , तारे , और अन्य खिलौने बनाये जाते है। पान , पाटा , चकला ,
एक जीभ , होला – होली बनाये जाते है। इन पर आटे , हल्दी , मेहंदी , गुलाल आदि से बिंदियां लगाकर सजाया जाता है। होलिका की आँखें
चिरमी या कोड़ी से बनाई जाती है। अंत में ढाल और तलवार बनाये जाते है।
बड़कूले से माला बनाई जाती है। माला में होलिका , खिलोंने , तलवार , ढाल आदि भी पिरोये जाते है। एक माला पितरों की , एक हनुमान जी
की , एक शीतला माता की और एक घर के लिए बनाई जाती है। बाजार से तैयार माला भी खरीद सकते है। यह पूजा में काम आती है।
💐पूजन करने का तरीका💐
पूजन करते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
जल की बूंदों का छिड़काव आसपास तथा पूजा की थाली और खुद पर करें।
इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
इसके पश्चात् होलिका को रोली , मौली , चावल अर्पित करें , पुष्प अर्पित करें , चावल मूंग का भोग लगाएं। बताशा , फूले आदि चढ़ाएं।
हल्दी , मेहंदी , गुलाल , नारियल और बड़कूले चढ़ाएं। हाथ जोड़कर होलिका से सुख समृद्धि की कामना करें। सूत के धागे से होलिका
के चारों ओर घूमते हुए तीन , पाँच या सात बार लपेट दें । जल का लोटा वहीं पूरा खाली कर दें।
इसके बाद होलीका दहन किया जाता है। पुरुषों के माथे पर तिलक लगाया जाता है। होली जलने पर रोली चावल चढ़ाकर सात बार अर्घ्य
देकर सात परिक्रमा करनी चाहिए । इसके बाद साथ लाये गए हरे गेहूं और चने होली की अग्नि में भून लें। होली की अग्नि थोड़ी सी अपने
साथ घर ले आएं। ये दोनों काम बड़ी सावधानी पूर्वक करने चाहिए। होली की अग्नि से अपने घर में धूप दिखाएँ। भूने हुए गेहूं और चने प्रसाद
के रूप में ग्रहण करे।
होलिका की कथा व्रतकथा
बसंत ऋतू के आते ही राग, संगीत और रंग का त्यौहार होली, खुशियों और भाईचारे के सन्देश के साथ अपने रंग-बिरंगी आंचल में सबको ढ़क लेती है. हिन्दुओं का यह प्रमुख त्यौहार होली हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस पवित्र त्यौहार के सन्दर्भ में यूं तो कई कथाएं इतिहासों और पुराणों में वर्णित है, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थ विष्णु पुराण में वर्णित प्रहलाद और होलिका की कथा सबसे ज्यादा मान्य और प्रचलित है.
प्रहलाद और होलिका की कथा
कथानुसार श्रीहरि विष्णु के परम भक्त प्रहलाद का पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप नास्तिक और निरंकुश था. उसने अपने पुत्र से विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा परन्तु अथक प्रयासो के बाद भी वह सफल नहीं हो सका. तदुपरांत हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे की भक्ति को देखते हुए उसे मरवा देने का निर्णय लिया. लेकिन अपने पुत्र को मारने की उसकी कई कोशिशें विफल रहीं इसके बाद उसने यह कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह कभी जल नहीं सकती. होलिका अपने भाई के कहने पर प्रहलाद को लेकर जलती चिता पर बैठ गई. लेकिन इस आग में प्रहलाद तो जला नहीं पर होलिका जल गई. तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी है.
इसी घटना के स्मरण स्वरुप लोग होली की पिछली रात को होलिका जलाते हैं और अगले दिन रंग और गुलाल से एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं.
होली के अवसर पर सतरंगी रंगों के साथ सात सुरों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस दिन रंगों से खेलते समय मन में ख़ुशी, प्यार और उमंग छा जाते हैं और अपने आप तन मन नृत्य करने को मचल जाता है. दुश्मनी को दोस्ती के रंग में रंगने वाला त्यौहार होली देश का एकमात्र ऐसा त्यौहार है, जिसे देश के सभी नागरिक उन्मुक्त भाव और सौहार्दपूर्ण तरीके से मानते हैं. इस त्यौहार में भाषा, जाति और धर्म का सभी दीवारें गिर जाती है, जिससे समाज को मानवता का अमूल्य सन्देश मिलता है